बात पते की

बैठो संग मेरे, बात कहूं इक पते की, राज़ नहीं, पर लोगो ने है आंखें मूंद ली, बन्दर बन से रह रहे, वो “गाँधी” के तीन, चुप तो यूँ है, जैसे जीभ ली हो इनकी छीन, गला रौंदते रहे, पर बोला न मेरा फौजी भाई, बेटा वो किसी का, इक बेटी की परछाई, तिरंगा बन … Continue reading बात पते की