नाम मेरा आशिफ़ा!
नासमझ थी, वो गलत थी, आठ साल की थी न, मंदिर-मस्जिद में भेद न कर पाई, तो क्या हुआ, थे न वो लोग जिन्होंने सिर्फ उस, माटी के पुतले को ही नही, बल्कि उसकी रूह को भी सबक सिखाया! सिखा गए वो उसे भी और, बाकी दुनिया को भी, की बदले की आग में, सब … Continue reading नाम मेरा आशिफ़ा!