“कलंकित तू, इंसान”

धुंधली पड़ गयी है नज़र, कान मैं भी पडा है असर, क्या…। कौन सी गलत कार, सुनकर भी न समझे, हुआ बलात्कार, हाल ये सिर्फ मेरा ही नही, आदत है, बात सुन दिल दहकता नहीं, कितने लोग, यूँ शैय्या पर लेट गए, ये तो अब आम सी बात है, न्यूज़ चैनल वाले से वो कह … Continue reading “कलंकित तू, इंसान”

मैं, कोटखाई की गुड़िया

मैं, कोटखाई की गुड़िया, उर्फ़ तंबाखू की पुड़िया, चबाया, थूखा, और पैरों तले मसल दिया, क्या…! कुछ गलत कहा मैंने, यही तो हुआ, निकली थी मैं भी, स्कूल से अपने झूमती, खाना खुद बनाये, मां से कहूँगी, बस यही सोचती, चल रही थी, क्या क्या बहाने लगाउंगी, इसी उधेड़बुन में लगी हुई थी, काम जो … Continue reading मैं, कोटखाई की गुड़िया