अपने !

समझ आया था जब, मुझे बचपन का मतलब, अब बड़े हो गए हो, बचपना छोड़ दो, अपनों ने तब कहा था! सीखा था मैंने जब, खुद को लिखना, ये क्या काग़ज़ और कलम लिए बैठे रहते हो, अपनों ने तब पूछा था! जीना सीखा ही था, अभी मैंने जिंदगी, जिम्मेदारी का बोझ भारी है काफी, … Continue reading अपने !

काग़ज़

कि कहूं अगर चांद से भी, कि दो लफ्ज़ लिखे तारीफ में तेरी, मानो मेरी, रह जाएगा वो कागज खाली, क्यूंकि लफ्जो में तेरा बयां है ही नहीं। dark_anki Continue reading काग़ज़