समझ आया था जब, मुझे बचपन का मतलब,
अब बड़े हो गए हो, बचपना छोड़ दो,
अपनों ने तब कहा था!
सीखा था मैंने जब, खुद को लिखना,
ये क्या काग़ज़ और कलम लिए बैठे रहते हो,
अपनों ने तब पूछा था!
जीना सीखा ही था, अभी मैंने जिंदगी,
जिम्मेदारी का बोझ भारी है काफी,
अपनों ने ये समझाया था!
खुश थे, बचपन में मेरे एक कदम उठाने पर,
वो सब जलते है तुम्हारी तरक्की से,
अपनों ने फिर ये दिल में बिठाया था!
कभी सहारा दिया था जिन्होंने मुझे चलने के लिए,
अब वो ही टांग खींचेंगे तुम्हारी
अपने बदलते हैं, अपनों ने सुनाया था!
समझा था जब अपनों का मतलब,
अपनों में भी कुछ ही अपने होते हैं,
अपनों ने ही ये बताया था!
So pensively written! Loved reading this!
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Thankyou ♥️
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