शाम का वक्त तो जैसे काटने को दौड़ता हो मुझे, आज भी इस अंधेरे की आदत जो ना थी मुझे, बत्ती जलाने से जो यूं रोशनी फैलती है, उस से संतुष्टि तो मिल जाती है पर आनंद नहीं, जिसकी तलाश में भटक रहा था आज भी।
मैं कुर्सी पर बैठ कर बालकनी से बाहर का नजारा देखने लगा, छोटे छोटे बच्चे अपनी साइकिल पर सवार हवा को चीरते आँखों से ओझल हो जाते और फिर वापिस आते। इस आँख मिचौली को बड़ी देर देखता हुआ मैं शून्य में चला गया। आँखों के आगे बचपन की यादें ताजा होने लगीं। जब मैं भी पैरों में लगे अदृश्य पहिए पर सवार हो आँखों से ओझल हो जाता तो मां के चेहरे पर डर वाला भाव देख मन में गुदगुदी सी होती। आज भी मां का प्रसंग आँखों के आगे आते ही मन भारी सा हो जाता है।
अभी इन यादों में डूबा था कि तभी पीछे से आ कर कब मेरे पोते साहिल ने मेरे गले में बाहों का हार डाल दिया, मुझे पता ही नहीं लगा। साहिल को देखकर मुझे अपने बच्चों की याद आ जाती, अक्सर मैं साहिल में खुद को खोजा करता।
साहिल के जन्म के उपरांत उसकी जिम्मेदारी मुझे सौंप दी गई थी, क्यूंकि बहू नौकरी नहीं छोड़ सकती थी। बेटे ने ठीक ही समझाया था, बाबा क्या करेंगे इस उम्र में काम करके, घर बैठिए आराम कीजिए, अगर मां जिंदा होती तो वह संभालती, उस दिन मां की बात आते ही बेटा भावुक हो गया और मेरी आंख भर आई। कैसा वक़्त आ गया है ना! आज मां के पास अपने बच्चे के लिए वक़्त नहीं है, मैं कभी कभी सोचता हूं उस प्यार के बारे में जो मेरी मां ने मुझ पर लुटाया था और उसी प्यार को आज इंसान के दिल में खोजता हूं तो निराशा हाथ लगती है। रात को पैर पसारते ही एकदम सन्नाटा छाने लगा। साहिल मुंह धोकर मेरे पास आकर बैठ गया, अक्सर इस समय वो मेरे पास आया करता और उससे बात करते करते समय कब बीत जाता पता ही नहीं चलता। मेरी अक्सर यही कोशिश रहती थी कि मैं साहिल को मां बाप का प्यार दूं उसकी जरूरतों पर ध्यान दूं। बढ़ती उम्र के साथ साहिल अपनी जिंदगी में व्यस्त रहने लगा था। मगर कभी कभी वक़्त निकाल कर मेरे पास आता तो दिल को सुकून मिल जाता। उम्र के किस पड़ाव पर में खड़ा था मुझे अक्सर महसूस होता कि साहिल से ज्यादा मुझे उसके प्यार की जरूरत है। साहिल की व्यस्तता के कारण मुझे ज्यादातर समय एकांत में काटना पड़ता, जिस से मुझे नफरत थी। मेरे अंदर अक अंधेरा मुझे कचोटने लगता और बार बार मुझ से पूछता कि कहीं इन सब का कारण मेरी स्वर्गीय धर्म पत्नी का मुझे समय से पहले छोड़ के जाना तो नहीं है। अगर वह होती तो शायद मेरी यह व्यथा न होती। बहू हमेशा कहती, बाबा आप आराम कीजिए। मगर अब तो नींद भी आंखों से गायब हो चुकी थी।
एक दिन मेरे मन में अपनी जन्मभूमि पर जाने के विचार ने जन्म लिया और ये विचार इस तरह बढ़ा की मैंने दिमाग में योजना बना ली।
जब पहली बार नौकरी की तलाश में बाहर आया था, तो बहुत कुछ पीछे छूट गया था और उसके बाद में यहीं बस गया और पीछे मुड़ कर न देखा। शहर की चकाचौंध ने मुझे अंधा कर दिया था। तब इस के आगे फिर किसी की जरूरत महसूस न हुई थी। जिंदगी भर रुपए कमाता रहा मगर आज समझ आया कि कीमत इंसान की होती है जो मेरे पास आज नहीं है। मह याद है वो आखिरी बात जब मां ने अश्रु भर कर वेदना भरे स्वर में कहा था, बेटा यहां आज तेरे पिता जी की मृत्यु हो गई है तेरे अलावा उन्हें अग्नि कौन प्रदान करेगा। उस दिन भी झूठ कह दिया था, कि हां मैं आ रहा हूं, न जाने कब तक इंतजार किया होगा उन्होंने मेरा। जब समझ आया कि मैं गलत हूं तो बहुत देर हो चुकी थी। पूरी रात अंधेरे में मोमबत्ती के सहारे साथ ले जाने का सामान बांधता रहा। बिजली का संचार होने के बावजूद बत्ती नहीं जलाई, क्यूंकि की ऐसा करने पर मेरे बेटे को पता लग जाता। मैंने घर से निकलने के लिए सुबह का इंतजार नहीं किया और चुपचाप आधी रात में घर से दबें पांव निकल गया और फिर पीछे मुड कर न देखा।
मैं जनता था कि सुबह मुझे बिस्तर पर न पाकर मेरा बेटा विचलित हो जाएगा, मुझे ढूंढने का हर संभव प्रयास करेगा। पर तब तक मै काफी दूर निकल चुका होगा। उत्तराखंड पहुंचकर मैं बहुत उत्तेजित हो गया, पहुंचते ही मैं केदारनाथ जाने वाले यात्रियों की टोली में शामिल हो गया। एक उम्मीद का छोटा सा दीया जलाकर मैं आगे बढ़ रहा था कि वहां पहुंच कर शायद मां से मुलाकात हो, मन में एक विश्वास सा आ रहा था और मन्दिर की सुबह और शाम की आरती में शामिल होने वाली मां की तस्वीर आंखों की चमक ब्धा रही थी मगर इस उम्मीद की दीए में हवा के हिलोरों से बुझने का डर तब पैदा हो गया जब सहयात्रियों के साथ बात चीत में यह पता चला कि केदारनाथ में हुई प्राकृतिक आपदा ने लाखों लोगों को निगल लिया है। यह सब सुनकर जैसे कोई ताक़त मुझे आगे जाने से रोक रही थी मेरे कदम मुझ से बगावत करने लगे, ऐसा लगा जैसे मेरे पैर पर किसी कर्मचारी की तरह इच्छापूर्ति न होने पर हड़ताल पर चले गए हों। आगे बढ़ने की मेरी हिम्मत जवाब देने लगी थी, मेरे इस तरह थक कर बैठने पर आसपास सहयात्री मेरे इर्द गिर्द एकत्रित हो गए, “क्या बात है भाई? कोई परेशानी है?” पूछते हुए एक आदमी ने पानी की बोतल मेरी तरफ की। मेरी तरफ से कोई जवाब न आने पर उसने फिर कहा आगे नहीं चलना, जल्दी चलो नहीं तो रास्ते में ही शाम हो जाएगी। बहुत हिम्मत कर मैं उठ गया क्यूंकि इस इलाके में दूर तक कोई घर भी नजर नहीं आ रहा था जहां रात को ठहरा जा सके, मगर ज्यों ज्यों आगे बढ़ रहा था मेरी मन की आशा कम होती जा रही थी। आखिरकार में जमीन पर बैठ गया। साथी ने धीरज बंधाया, “बस अब थोड़ा ही दूर है मंदिर! हिम्मत रखो और चलो। ” मगर इस बार मैं नहीं उठा। लोग समझा बुझा कर आगे बढ़ गए, कुछ देर मैं वहीं बैठा रहा मगर फिर बिना कुछ सोचे विचारे उठ कर विपरीत दिशा की ओर मुड़ गया। मुझे नहीं मालूम था कि मुझे कहां जाना है। मंज़िल का भी पता नहीं था। इसी वजह से मेरे कदम लड़खड़ा रहे थे, रात होने का डर भी मेरे कदमों में स्फूर्ति नहीं ला पा रहा था, आज पहली बार शाम को रात के साथ मिलते हुए इतने करीब से देखा और महसूस किया था। माने अंधेरी रात को तारों ने ।दुल्हन की तरह सजाया हो, मानो पूर्णिमा का चांद दुल्हन की तरह सजा हो, मानो पूर्णिमा का चांद दुल्हन का मुखड़ा और उसमे दुल्हन का मुखड़ा लिपटा हुआ और उस से लिपटा हुआ तारों का आंचल। उसके उपर ठंड का कोहरा दुल्हन की सिसकियां की तरह कानों को सुनाई पड़ रहा था। खुद को इतने ज्यादा अंधेरे में देख कर मैं पहली बार नहीं डरा था, आज बहुत अपनापन महसूस हुआ। रात की इन सिसकियों से सुनसान से इस रास्ते पर एक भूतिया झोंपड़ी दिखाई दी, जिसके बाहर अलाव जल रहा था। इस आग को देख कर रात की बढ़ती ठंड का एहसास ज्यादा होने लगा। न जाने कब मैं उस झोंपड़ी के बाहर जा पहुंचा। अंदर जाकर पूछने की झिझक और आग की गर्मी ने झोंपड़ी के करीब पहुंचने का एहसास करवाया। बहुत हिम्मत कर फिर झोंपड़ी का दरवाजा खटखटा दिया। बहुत देर तक दरवाजा न खुलने पर मुझे अपने दरवाजा खटखटाने की क्रिया पर अफसोस होने लगा। मैं वापिस लौटने के लिए पीछे मुड़ा कि तभी पीछे से आवाज़ आई ‘ बेटा ‘ कंपकंपाती सी इस आवाज़ की तरफ देखा था तो सामने मां खड़ी थी। मेरी आंखों से गंगा यमुना बहने लगी। “मुझ से बिना मिले ही लौट रहे थे” कंपकंपाती सी इस आवाज़ में छिपे दर्द को भी मैंने महसूस किया। नजदीक पहुंच कर मां को गले से लगा कर मैं बहुत रोया और रोने से मिलने वाले सुकून का एहसास भी किया मैंने। आंसू पोंछ कर मां ने मुझ से कहा, “क्यों बेटा, अंदर तो आओगे ना” कि इतना कहकर वो चुप हो गई। मैं जानता हूं मां की आप मुझ से नाराज़ हैं मगर मां मैं आपकी नाराजगी दूर करने ही आया हूं, अपने मन की इस बात को मैं जुबान पर न ला पाया। मैने आगे बढ़ कर मां के चरण स्पर्श किए, मां ने जब अपना आशीर्वाद और दुआओं से भरा हाथ मेरे सिर पर रखा तब मेरा मन खुशी से भर गया, मानो जीते जी जन्नत नसीब हो गई हो, बाजू पकड़ कर मां मुझे घर के भीतर ले आई, अंधेरे से इस घर मैं बिजली का संचार तो नहीं था, मगर एक दो जगह जलते दीयों ने पूरे घर को रोशन कर दिया था। घर के एक कोने में जल रहे चूल्हे से अधिकांश जगह पर रोशनी फैली हुई थी। मां ने मुझे खाट पर बिठाया और जल्दी से मेरे लिए एक बर्तन गरम पानी ले आई। गरम पानी में पैर रखते ही मानो वर्षों की थकान मिट गई, मैं बहुत हल्का महसूस कर रहा था। मां की आवाज़ पर मेरा ध्यान उनकी ओर गया। पानी का बर्तन एक तरफ कर मैं चूल्हे के पास जा कर बैठ गया जहां मां रोटियां सेंक रही थी।
सब्जी भाजी तो रोज ही कहता होगा न ले आज दूध के साथ खाना खा ले परोसते हुए मां ने कहा। दूध की थाली के बीच मक्की की बड़ी सी रोटी को मै एक टक बड़ी देर तक देखता रहा मां मेरे मन की असमंजस को समझ गई थी अपनी और खींचते हुए बोली तू आज रोटी को दूध से मिलाना नहीं सीख पाया क्या? मां की इस ताने भरी डांट को सुनने के लिए मेरे कान तरस गए थे। कुछ भी हो आज मैंने जरूरत से ज्यादा खा लिया। उसके बाद में बिस्तर पर इस कदर बेहोश हुआ कि अगले दिन जब सुबह की तेज किरणे आंख पर पड़ना शुरू हुई तो आंख खुली तो मुझे एहसास हुआ कि शायद समय बहुत बीत गया है। उठ कर पूरे घर में नजर दौड़ाई मां कहीं नजर नहीं आई तो मेरे मन में अजीब सा डर पैदा हो गया। जल्दी से उठकर मै घर से बाहर निकल गया इधर उधर नजर घुमाई तो देखा मां पक्षियों को दाना खिला रही थी, पक्षी मां के हाथ पर बैठ कर दाना खा रहे थे, मां को शायद
मेरे वहां होने का एहसास हो गया था। पीछे मुड़ते ही बोली तुझे भूख लगी होगी ना, चल! मैं मां के पीछे पीछे अंदर आ गया, “नहीं मां भूख नहीं है” मैंने कहा। “अरे झूठ मत बोल आधा दिल बीत गया। उन्होंने फिर मेरी पसंद के आलू के परांठे बनाए खाना खाने के बाद उठते उठते मैंने हंसी में कहा मां इतना खिलाओगी तो एक महीने में कददू हो जाऊंगा और फिर मैं हंस पड़ा। “एक महीना कहां है बेटा आज का यही दिन है, इसी दिन के लिए तो मैं जिंदा थी तेरे इंतज़ार में,” इतना कहकर मां भावुक हो गई। “मां ऐसा क्यों कहती हो आप कहीं नहीं जाओगी शिकायती स्वर में कहा। मगर मां ने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया, “चल बेटा, बहुत काम निपटाना है” इतना कह कर वह जल्दी से बाहर निकल गई। मैं भाग के मां का पीछा करने लगा और इस तरह हम घने जंगल में आ गए थोड़ी सी दूर एक गौशाला नजर आईं जिसे देख कर मां के कदम और तेज़ हो गए। वहां बहुत सी गाय बंधी थी, सबसे बाहर की तरफ सफेद रंग की गाय खड़ी थी। काफी समय तक एक दूसरे को देख कर ना जाने क्या कह सुन रही थी। रात घिरने को आई थी मगर मां को तो जैसे याद ही नहीं थी। भूत कोशिश कर अंत में मैंने मां को हिलाया तो महसूस हुआ की मां का शरीर आग की तरह तप रहा था। मेरा दिल जोर से धड़कने लगा जैसे किसी अनहोनी के एहसास ने मुझे डरा दिया, मेरी आवाज़ गले से बाहर नहीं आ पा रही थी। “बेटा” कंपकंपाती हुई मां बोली, “जिस वजह से तुम यहां तक खींचे चले आए हो, जिस सुख की तलाश में भटक रहे हो, वो सुख दूसरो को सुख देने पर मिलता है” इतना कहकर मां चल बसी। मैं घंटो मां के शरीर को खुद से लिपटा कर रोता रहा। अगर मुझ से कोई आकर नहीं पूछता कि तुम क्यों रो रहे हो तो शायद मै यूं ही बेसुध पड़ा रोता रहता। मगर पास से गुजर रहे एक व्यक्ति ने मुझ से आकर पूछा, जिसे मै शोक में डूबा सुन नहीं पा रहा था। उसने मुझे जोर से झिंझोड़ा तो मै अचानक चौंका और अगले ही पल उसके कंधे पर सर रख कर मैंने दोबारा विलाप करना शुरू के दिया। “भाई साहब” वो जोर से झल्लाया। मैंने मासूमियत भरे भाव से उसे देखा, उसने फिर पूछा “रोते क्यों हो भाई?” “वो मेरी मां इस दुनिया को छोड़ चल बसी,” मैंने रोते हुए कहा। “तुम्हारी मां !!” उसने आश्चर्यचकित बाव से पूछा। मैंने ऑनी गोद की और देखा तो कुछ नहीं था। मैं एकाल के लिए एक छोटे बच्चे की भांति जिसका खिलोना गुम हो गया कि तरह अपने मां के शरीर को ढूंढने लगा। वह आदमी मुझे पागल समझ के आगे निकल गया। मेरा दिमाग स्थिर नहीं हो पा रहा था कि वह जो कुछ पीछे हुआ, सपना था या हकीकत! इसी जद्दोजहद में मेरी रात निकल गई एक मिनट के लिए भी मैंने आंखें नहीं झपकी। सूर्य उदय हुआ तो मन में एक नई उमीद जगी, मां की बात कानो में गूंज रही थी, दिमाग ने ये निर्णय लिया, की मै सुख की तलाश करूंगा, एक नए नजरिए से उस अनंत सुख की तलाश में चलूंगा।
लेखक : रितिका शर्मा
Namaste Dark Anki: Altho’ I can’t read your language, I can admire the Mountain photos. They are very majestic. Where are these Mountains??? So breathtaking!
Sherri-Ellen & BellaDharma
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Soon you will get to see a lot. These all from Himachal Pradesh, India
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Be happy 💟
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Yeah
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Keep it up 👌👌
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thank you
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