क्यों तुझ से लड़ने पर,
मैं खुद से लड़ जाता हूँ,
क्यों तुझे दर्द देने से पहले,
मैं खुद उस दर्द से गुजरता हूँ,
तू मुझे मनाए, मुझ पे प्यार जताए,
इस लिए, मैं तुझ से रूठ जाता हूँ,
क्यों तेरी बातें ही काफी होती हैं,
मेरे सीने को चीर जाने के लिए
क्यों तेरे संग होने पे मैं,
दुनिया को भूल जाता हूँ,
तलब इस क़दर लगी है,
मेरे होंठो को तेरे होंठो की,
कि इन्हें जब देखता हूँ,
खुद ही झुकता चला जाता हूँ,
क्यों छूने पे उनको, मैं,
खुद को रोक नही पाता हूँ,
बह जाता हूँ इस हवा में,
तेरे रंग में रंग जाता हूँ,
क्यों तेरी शरारत को सच मान,
यूँ परेशान हो जाता हूँ,
क्यों तेरे मनाने से पहले मान जाता हूँ,
क्यों तेरे रूठने पर में,
दुनिया से रूठ जाता हूँ,
क्यों जब भी तुझे देखता हूँ,
तो तेरी आंखों में समा जाता हूँ,
क्यों जब यूँ मुस्कुराता हूँ,
तो तेरी यादों में डूब जाता हूँ,
या जब तुझे याद करता हूँ,
तो लबों पे मुस्कुराहट को पाता हूँ,
तेरी आँखों में आया वो आंसूं,
क्यों मेरी आँखों से टपकता है,
क्यों मेरा ये दिल आधा मुझ में,
आधा तुझ में धड़कता है,
क्यों जब लिखने तुझे बैठता हूं,
तो कागज़ मुंह मोड़ लेता है,
अल्फ़ाज़ मेरे सुन्न हो जाते है,
कलम मेरा साथ छोड़ देती है,
नयनो से छलकता है दर्द मेरा,
दिल कहता है कि हां बस तू,
एक तू ही है, जिसको मैं अपने,
लफ़्ज़ों में, पिरो नहीं सकता।
Me on:
Leave a Reply