खुद की ही तलाश..।

एक अपना ही जहां उसका,

खुश रहता था जिसमे हर समा,

एहसास हुआ कि, हक़ीक़त नही वो,

फिर भी राह ताके इंतेज़ार करता रहा..!

जिंदगी !

मंज़र वो देख खुदा का दिल न पिघला,
खुद में ही टूट गया उसका बाशिंदा..!
टूटी वो आखिरी उम्मीद जो उपर वाले से था लगा बैठा,
पंख टूट गए फिर भी उड़ा वो परिंदा..!

हर बात पे ऊपर वाले को याद करने वाला,

जिंदगी में फिर गिर जाने पर भी, उसे याद न किया ।

कभी प्यार की एक बूंद को तरसता था,

आज अमृत पड़ा देख भी उसका जी नही ललचाता..।

सब है हैरान की ऐसा भी क्या गिरा,

वो भगवान उसकी नजरों में की फिर न उठा..!

अपनो के कंधों पे रोने का, मन था उसका हो आया,

तब उसने खुद को अकेला था खड़ा पाया..!

फिर खुद टूटे व डगमगाते विश्वास पे रास्ता बनाया,

खुद नग्न पैर चल कर उसको आजमाया..!

न उम्मीद न लगाव, खाली मिट्टी का पुतला है,

रोशनी से कोसो दूर, वो अंधेरे में घुल बैठा है..!

कभी इधर कभी उधर दिल मे दर्द छुपाए जा रहा,

वो खुद की ही तलाश में है भटक रहा..!

dark_anki

Get me

Instagram,

Twitter,

blogger

Facebook

Advertisement

Comments

2 responses to “खुद की ही तलाश..।”

  1. giveitathought Avatar

    खूबसूरत कविता

    Liked by 1 person

    1. dark anki Avatar

      धन्यवाद ! 😊

      Liked by 1 person

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: