धुंधली पड़ गयी है नज़र,
कान मैं भी पडा है असर,
क्या…। कौन सी गलत कार,
सुनकर भी न समझे, हुआ बलात्कार,
हाल ये सिर्फ मेरा ही नही, आदत है, बात सुन दिल दहकता नहीं,
कितने लोग, यूँ शैय्या पर लेट गए,
ये तो अब आम सी बात है,
न्यूज़ चैनल वाले से वो कह गए,
किसने किया वार, किसका गिरा व्यापार,
पड़ती है लोगों को, सिर्फ पैसे की मार,
हुए एक समान ये दिन ये रात,
विश्वास बना कर जाते हैं विश्वासघात,
मंदिर वो भर रहे, चांदी व सोने से,
गरीब…! डरता नहीं कुछ खोने से,
कैसी ये हवस छुपाये मुस्कान है,
शरीर का मोह, उसमे कहाँ बस्ती जान है,
ये जिस्म तो बस दो पल का मेहमान है,
क्या यही है कारण, बना जो तू हैवान है,
कीट पतंगे भी समझ लेते हैं, दर्द दूसरे का,
क्या हुआ है, क्यों कलंकित तू, इंसान है…।