मोहब्बत की कड़ी

है ये, इक मोहब्बत की कड़ी,

जो थी कुदरत ने रची,

दिल मेरा था, लकड़ी का,

आकर कोई उसे छुआ,

वो इक कोमल, सुंदर सी हरी,

चंचल, खुश रहती हर घड़ी,

जो सूरज की धूप सताई,

बन में दीवार, बनी वो परछाई,

गड़गड़ाहट जो बारिश की आई,

लग वो गले मेरे मुस्कुराई,

मोम सा बन में पिघलने लगा,

दिल उसका भी जोरो से धड़कने लगा,

पर था अनजान में इक बात से,

जाने को हुई, अपनी कड़ी ये,

दुआ की मेरी, उम्र दे उसे,

पर पतझड़ संग ले गयी उसे,

मोहब्बत के गुनाह की मिली सजा,

पर इसका भी था, अपना मजा,

जाड़े की बर्फ वो आई,

कब्र जिसने उसकी बनाई,

कुदरत ने फिर खेला खेल था,

लौट के आया वो उसका मेल था,

वो इक कोमल सुंदर सी हरी,

चंचल, खुश रहती हर घड़ी,

मैं तो डाल उस दरख़्त की,

वो है पत्ती हरी….।

dark_anki

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