पग-पग बढ़ता मैं, सुबह के इंतेज़ार में,
धूप की आशा छोड़, किरणों की आस में।
दरख्तों से सुनते, पत्थर पे घिसते,
लहर जैसे बह रहा हुँ मैं।
हर मोड़ एहसास दिलाते, माँ की बातें,
हवा के संग चल रहा हुँ मैं।
एक सुकून की आस में, सुबह के इंतेजार में।
बंधी है बेड़ियां, अंधेरा हर श्वास में,
सुनसान सी राह पे भटक रहा हूँ मैं।
पतझड़ सी बेरंग जिंदगी, झड़ रही है,
सावन की आस में, सुबह के इंतेज़ार में।
कसमे वादे, दूर कहीं रिश्ते छूट गए,
जहां मिले रंग, वो किस्से मिट गए।
न मैदान मे, न बागबान में,
अरमान दबा आए, मुर्दों के जहान में।
पग पग बढ़ रहा हुं इस काली रात में,
सुबह के इंतेज़ार में…..।
dark_anki
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