“आत्मसम्मान”

एक बार एक नदी थी, बहुत चंचल और शांत थी, कभी इस तो कभी उस किनारे पे झूलती थी, किनारा उसे कुछ भी सुना देता था, तो वो कुछ समेटे और कुछ बखेरते निकल लेती थी, बूंदों को उसकी ये बात अच्छी न लगती थी, और बूंदों मैं नदी की जान बसती थी, 

एक समय की बात हुई, किनारे ने फिर नदी का मजाक बनाया था, बूंदों की आंखों मैं आंसूं थे, क्योंकि नदी ने दिल लगाया था, आँसू उसके नदी देख न पाई, वो उसके दिल मे तूफान गुस्से का लाई, नदी फिर बाढ़ का रूप ले कर आई, और किनारे को डूबा गयी, ये देख किनारे ने माफी मांगी, पर नदी के गुस्से मैं कमी न आई, ये देख बूंदों ने नदी को एक बात बतलाई, गलती तम्हारी ही है, बात ये सुनकर नदी उलझ सी गयी, ये सब देख आसमा ने नदी को समझाया कि बात सिर्फ “आत्मसम्मान” की थी।

©dark_anki

 

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